- विसय सूची
- 1-गठिया का निदान:
- 2-गठिया से बचाव:
- 2.1- अपरिवर्तनशील
- 2.2- परिवर्तनशील
- 3-गठिया के साथ जीवन:
- 4-गठिया: दर्द और सूजन से मुक्ति
- 5-दवाएं
- 5.1 एन एस आई डी
- 5.2प्रतिकारक दवाये
- 5.3स्टेरॉइड दवाये –
- 5.4अंतिरुमेटिक दवाये
- 6-जीवन शैली में बदलाव
- 7-जॉइंट सपोर्टिंग फेम का प्रयोग .
- 8–फिजियो थेरेपी
- 9–आल्तेर्नेतिव थेरेपी
- 10-जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी
- 11-स्टेम सेल थेरेपी
- 12-सारांश में
1-गठिया का निदान:
गठिया का निदान इससे बचाव व उपचार -गठिया के निदान में आम तौर पर चिकित्सा इतिहास, शारीरिक परीक्षण, इमेजिंग परीक्षण यानि एक्सरे सीटी स्कैन या मआर आई और प्रयोगशाला परीक्षण (रक्त परीक्षण, सिनोवियल फ्लूइड का परीक्षण शामिल होता है। स्थिति के प्रभावी प्रबंधन और उपचार के लिए प्रारंभिक निदान महत्वपूर्ण है। 1-सबसे पहले एक्सरे के द्वारा -पता किया जाता है की जोड़ों के बीच के कार्टीलेज मे कितना घिसाव हुआ है और उसकी स्पेस कितनी कम हुई है । जैसे नीचे के घुटने के एक्सरे मे देखें की घुटने जोड़ों के बीच मे एक तरफ़ दूरी काफी कम हो गयी है और जोड़ उस तरफ़ झुक सा गया है। ईसमे कितनी स्पेस कम हुई है , या हड्डीया बिल्कुल सट गयी है , उसी के अनुसार उपचार का निर्णय लिया जाता है ।
सीटी स्कैन या एम आर आई द्वारा हड्डी के अलावा जॉइन्ट को जोड़ने वाले लीगामेंट और मसल्स मे आई विकृति या टूट फूट का बारीकी से अद्यायन किया जाता है । आरथोस्कोपी मे आरथोस्कोप को जोड़ के अंदर प्रवेश कराकर , उसमे आई खराबी का निदान किया जाता है ।
2-गठिया से बचाव:
गठिया से पूरी तरह से बचाव करना संभव नहीं है, लेकिन कुछ चीजें हैं जो आप अपने जोखिम को कम करने के लिए कर सकते हैं:। इसके मुख्यतः दो कारक होते है 2.1- अपरिवर्तनशील जैसे उस व्यक्ति की जेनेटिक प्रोफाइल ,मतलब उसके माता या पिता या पुरखों के जीन मे गठिया का होना लिखा था जो उनसे हस्तांतरित होकर अब उसके जीन मे भी आ गया है । यह उसका भाग्य या नियति है । इसे टाला नही जा सकता । उसे किसी निश्चित उम्र मे गठिया हो कर ही रहेगा । 2.2- परिवर्तनशील जैसे ,जो की समय के साथ कार्टीलेज के घिसने या टूट-फूट के कारन होता है , इस प्रकार की गठिया मे व्यक्ति के रहन-सहन खाने-पीने और धूम्रपान की आदत के कारन होती है । इसे टाला जा सकता है और इसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है । -जैसे ऑस्टओ-आरथराइटीस– इसमे अपने वजन को नियंत्रित करके और चोटों से बच कर ,इसकी तीव्रता को कम कर सकते है या उसके होने की उम्र बढ़ा सकते ,पर पूरी तरह से खत्म नही कर सकते ।क्योंकि रोजमर्रा के होने वाले दैनिक कार्यकलापों से कार्टीलेज का कुछ न कुछ घिसाव होने से रोका नहीं जा सकता । इसके अलावा आप रुमेटोइड-आर्थ्राइटिस और गाऊटी-आर्थराइटीस की तीव्रता को भी निम्न उपायों से कम कर सकते है .
- स्वस्थ भोजन: फल, सब्जियां और साबुत अनाज से भरपूर आहार खाएं। लेकिन गाउट मे ,शुगर प्रोटीन और पीउरीन वाली चीजों का कम से कम प्रयोग करे.
- नियमित व्यायाम: हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट मध्यम-तीव्रता वाला व्यायाम करें।
- वजन घटाना: यदि आप अधिक वजन वाले या मोटे हैं, तो वजन कम करने से आपके जोड़ों पर दबाव कम होगा।
- धूम्रपान न करें: धूम्रपान गठिया के विकास के जोखिम को बढ़ा सकता है।
3-गठिया के साथ जीवन:
गठिया एक पुरानी बीमारी हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक सक्रिय और पूर्ण जीवन नहीं जी सकते। उपचार और जीवनशैली में बदलावों के साथ, आप अपने गठिया को नियंत्रित कर सकते हैं और दर्द और सूजन को कम कर सकते हैं।
4-गठिया: दर्द और सूजन से मुक्ति
गठिया, जोड़ों को प्रभावित करने वाला एक आम रोग है। यह दर्द, सूजन और अकड़न का कारण बन सकता है, जिससे गतिशीलता और जीवन की गुणवत्ता में कमी आ सकती है। गठिया के कई प्रकार होते हैं, जिनमें से प्रत्येक के अपने लक्षण और उपचार होते हैं।
5-दवाएं
गठिया मे पहले दर्द निवारक और सूजन को कम करने वाली दवाये दी जाती है । 5.1 एन एस आई डी यानि नान स्टेरॉइडल सूजन वाली दवाये। जी आईब्रूफेन या कोमबीफलाम । ये काफी कारगर होती है पर इनका कभी कभी दुसप्रभाव ,आंतों मे सूजन , घाव या हार्ट अटैक भी हो सकता है। इसलिए इन्हे सावधन्नी पूर्वक ही लेना चाहिये। 5.2प्रतिकारक दवाये जैसे मेनथाल या कैप्साइसीन । ये क्रीम के रूप मे होती है और ऊपर से हल्की मालिश क जाती है। इसके अलावा इन दवाओं का स्प्रे भी आता है । ये और दर्द के असर को कम कर देती है . 5.3स्टेरॉइड दवाये – ये सूजन व दर्द को कम करती है । और जोड़ों तथा टिशू के क्षति को बचाती है। ये टैबलेट के रूप मे या जोडों मे इंजेकसन द्वारा दिया जाता है । 5.4अंतिरुमेटिक दवाये – ये रुमेटिक गठिया की तीव्रता को कम करती है और जोड़ों तथा लीगामेंट की क्षति को बचाती है।
अपने वजन को नियंत्रित करना . नियमित व्यायाम जो जोड़ो और लिगामेंट को मजबूती प्रदान करता है . इससे जोड़ो की सक्रियता बढती है और उन पर स्ट्रेन कम हो जाता है ,
7-जॉइंट सपोर्टिंग फेम का प्रयोग .
इसमे उस जोड़ रीढ़ की हड्डियों को सपोर्ट करने के लिये , घुटने के लिए , कलाई के लिए विशेष तरह फ्रेम आते है . ये जोड़ पर पड़ने वाले भर को शिफ्ट कर देते है जिससे जोड़ का दर्द काफी हद तक कम हो जाता है .
इसिसके अंतर्गत फिजियो थेरेपी के डा आपके जोड़ो की तकलीफ और उनमे आई विकृति के लिए विसेश प्रकार की कसरत बताते और कराते है जिससे उस जोड़ की कार्यशीलता बढ जाती है .उसकी मांसपेशिया और लिगामेंट्स भी मजबूत हो जाते है . और दर्द भी काफी हद तक कम हो जाता है .
9-आल्तेर्नेतिव थेरेपी
इसके अन्तरगत विभिन्न प्रकार की थेरेपी आती है . जैसे अक्युप्रेसर अक्युपन्चर और विशेष प्रकाश की मालिश की जाती है . इसके आलावा कुछ कार्टिलेज बनाने वाली दवाएं जैसे ग्लुकोसमिन ( Glucosamine)और कोन्द्रितीन (Chondritin) खाने की सलाह दी जाती है.
जब जोड़ बुरी तरह से खराब हो जाता है ,विसेशतः ग्रेड ३-4 की स्टेज में या एंड स्टेज में ,जब चलना बिलकुल ही मुस्किल हो जाता है .इस स्थिति में पुराने जोड़ को हटाकर स्टील की नयी प्रोस्थेसिस लगाई जाती है जिससे चलना फिरना फिर लगभग नार्मल की तरह ही हो जाता है .
इस विधा में जब जोड़ो में स्थित कार्टिलेज आधा या पूरी तरह से घिस जाता है तो उससे स्टेम सेल प्राप्त किया जाता है . उस स्टेम सेल को प्रयोगशाला में टिश्यू कल्चर टेक्निक से उगाया जाता है जब वह उचित मोटाई/ Thicknessका बन जाता है तो उसे फिर से घुटने या उसी जॉइंट में ट्रांसप्लांट कर दिया जता है. इससे बिलकुल नयी नारमल कार्टिलेज बन जाती है और वह जॉइंट भी जवान लोगोन की तरह हो जाता है .
12-सारांश में
गाठिया लगभग १५० के करीब रोगों का एक समूह है लेकिन उसमे ओस्टेओआर्थ्रितिस ,रुमेटीक आर्थराइटिस ,गोउट, और सोरिओतिक आर्थरिटिस सबसे आम प्रकार के होते है .इनसे पूरी तरह से बचा तो नहीं जा सकता है पर उचित जीवन शैली अपनाई जाय ,और खान-पान तथा वजन को नियंत्रित रखा जाय तो इससे काफी कुछ बचा जा सकता है, ऊपर दिए गए उपायों से गठिया का उचित रूप से उपचार किया जा सकता है ,सतीश त्रिपाठी sctri48
Very informative. A person can obtain reliable knowledge in a precise way about the causes as well as available remedies of the disease. Thanks a lot to Dr. Tripathi for disseminating this knowledge to common people suffering from the disease.
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