A new theory proposes a weaker connection between depression and serotonin-वर्षो से, यह सिद्धांत प्रचलित कि मस्तिष्क में सेरोटोनिन नमक neurochemical का स्तर कम होने से depression /अवसाद होता है। इस समझ ने antidepressant/ अवसादरोधी दवाओं के प्रयोग को काफी प्रभावित किया है । जिनमें से कई दवाएं ,सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाकर काम करती हैं। जबकि प्रतिष्ठित जर्नल नेचर में प्रकाशित recent रिसर्च , इस theory पर प्रस्न चिन्ह उठाती है और इसे मानने से इंकार करती है ।
- Table of Contents
- 1-इंग्लैंड में किये गए नए रिसर्च के अनुसार –According to a research in England.
- 2-सेरोटोनिन का शरीर पर प्रभाव –Effect of Serotonin on body.
- 3–सिरोटोनिन की अधिकता का प्रभाव -Effect of hyper-serotonins .
- 4-सिरोटोनिन सिंड्रोम/ serotonin syndrome .
- 5–सेरोटोनिन और अवसाद: एक कमजोर कड़ी –Weaker connection between depression and serotonin.
- 6 -शोध का निसकर्ष–Epitome of Research.
- 7–सिरोटोनिन के बारे में नयी वैज्ञानिक दृष्टि – New scientific view about serotonin.
- 8-उपचार मे परिवर्तित दृष्टि का समावेश –Modified treatment of depression
- 9–सारांश –सतत अनुसंधान के लिए एक आह्वान Nutshell-continuous research needed.
1-इंग्लैंड में किये गए नए रिसर्च के अनुसार –According to a research in England. पता चला है कि depression /अवसाद एक अधिक जटिल मुद्दा हो सकता है, पर यह केवल सेरोटोनिन के असंतुलन से परिभाषित नहीं होता है। यह उपचार के पारंपरिक दृष्टिकोण को भी चुनौती देता है ,और अवसाद के प्रबंधन में नए रास्ते तलाशने की बात करता है। क्योंकि डिप्रेशन में ब्रेन में सेरोटोनिन की कोई कमी नही होती और उस पर antidepressant दवाओं के प्रयोग से नार्मल सेरोटोनिन का स्तर और भी बढ जाता है ,जो शरीर पर कई प्रकार के हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है .
2-सेरोटोनिन का शरीर पर प्रभाव –Effect of Serotonin on body. सेरोटोनिन एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला neurotransmitter है जो ब्रेन में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संकेतों को पहुंचाता है। तथा आंत में ये हार्मोन के रूप में tryptophan द्वारा निर्मित होता है । यह हमारे मूड को स्थिर रखने ,अनुभव करने , सीखने, स्मृति को समृदध करने , स्वस्थ नींद सहित मस्तिष्क और शरीर के विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । यह मूड को नियंत्रित करने में मदद करता है.इसको फील-गुड नयूरोकेमिकल / हार्मोन भी कहा जाता है .क्योंकि हमें यह खुसी का अनुभव भी कराता है । इसलिए हमारे मानसिक स्वास्थ्य इसका पर्याप्त मात्रा में ब्रेन में होना आवश्यक होता है । हमारा ब्रेन व शरीर में ,पोषण और विटामिन की कमी के कारण पर्याप्त मात्रा मे सेरोटोनीन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हो पाता है।उदाहरण के लिए, विटामिन बी 6 और विटामिन डी दोनों का निम्न स्तर सेरोटोनिन के घटे स्तर से सम्बंधित है । tryptophan, सेरोटोनिन के उत्पादन में शामिल एक आवश्यक अमीनो एसिड होता है। इसे केवल आहार के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। यह दूध ,केला शहद आदि के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।
3–सिरोटोनिन की अधिकता का प्रभाव -Effect of hyper-serotonins
उचित मात्रा मे सेरोटिनिन का बनना हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और खुशी के लिए अति आवश्यक है । परअगर दवाओं के द्वारा इसका स्तर बढ़ा दिया जाए तो यह शरीर बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है । जैसे बहुत उत्तेजना या बेचैनी ,चिडचिडापन अनिद्रा, भ्रम की स्थिति उत्पन्न होना ,तेज़ हृदय गति और उच्च रक्तचाप होना आदि । इसके अलावा मांसपेशियों में कम्पन होना ,अधिक ,पसीना आना या दस्त हो सकता है । 4-सिरोटोनिन सिंड्रोम/ serotonin syndrome जब इसकी मात्रा बहुत अधिक बढ जाती है तो इसे सिरोटोनिन सिंड्रोम/ serotonin syndrome कहते है, यह एक गंभीर दवा-प्रतिक्रिया है। यह उन दवाओं के कारण होता है जो शरीर में सेरोटोनिन के उच्च स्तर का निर्माण करती हैं। इसमे मृत्य तक हो सकती है ।
(सभी फ़ोटो साभार जी न्यूज़ एंड एंकर शिवांक मिश्रा )
5–सेरोटोनिन और अवसाद: एक कमजोर कड़ी -Weaker connection between depression and serotonin लंदन के वैज्ञानिकों द्वारा अवसाद /depression और उससे व्यक्ति के शरीर मे सेरोटोनीन का स्तर कितना प्रभावित होता है । इस विषय पर एक विस्तृत अध्ययन किया गया था ,जिसका निष्कर्ष प्रति सम्मानित वैज्ञानिक पत्रिका Nature में प्रकाशित हुआ था। इसके अनुसार अधिकतर अवसाद से पड़ित लोगों मे सेरोटोनीन का स्तर सामान्य के लगभग ही पाया गया। इसका सीधा मतलब हुआ की उन्हे सेरोटोनीन बढ़ाने वाली दवाएं देने का कोई औचित्य नही बनता। बल्कि ये दवाये देने से उनका सेरोटोनीन का स्तर सामान्य से अधिक बढ़ जाता है । यह चिड़चिड़ापन , aggressiveness ,नींद , पाचन मे परेशानी ,उच्च रक्तचाप जैसी समस्याए उत्पन्न कर सकता है। इसका मतलब ये हुआ के अभी तक इन दवाओं को बनाने वाली कंपनिया अपनी अधूरी सूचना के द्वारा चिकित्सकों को भ्रमित कर अपना उल्लू सीधा कर पैसा कमा रहीं थीं ।
6 -शोध का निसकर्ष–Epitome of Research नए शोध से संकेत मिलता है कि कम सेरोटोनिन और अवसाद के बीच कोई सीधा संबंध मौजूद नहीं हो सकता है। जबकि सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाने वाली कुछ दवाएं मूड में सुधार करती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सेरोटोनिन की कमी सबसे पहले अवसाद का कारण बनती है।
आगे बढ़ना: अवसाद अनुसंधान में नई दिशाएँ
7–सिरोटोनिन के बारे में नयी वैज्ञानिक दृष्टि – New scientific view about serotonin यह नई समझ अवसाद के प्रति अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। शोधकर्ता अब अन्य न्यूरोट्रांसमीटर और मस्तिष्क सर्किट पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो इस स्थिति में भूमिका निभा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, आनुवंशिकी, पर्यावरण और तनाव जैसे कारकों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
8-उपचार मे परिवर्तित दृष्टि का समावेश –Modified treatment of depression
निष्कर्ष वर्तमान दवाओं को अप्रभावी नहीं बनाते हैं। हालाँकि, वे व्यक्तिगत उपचार योजनाओं की आवश्यकता पर जोर देते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति में अवसाद के अद्वितीय अंतर्निहित कारणों पर विचार करते हैं। इसमें केवल सेरोटोनिन को लक्षित करने वाली दवाओं के साथ या इसके बजाय वैकल्पिक उपचारों की खोज शामिल हो सकती है।
9–सारांश –सतत अनुसंधान के लिए एक आह्वान Nutshell-continuous research needed.
यह शोध एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह पहेली का सिर्फ एक टुकड़ा है। अवसाद में योगदान देने वाले जटिल जैविक और पर्यावरणीय कारकों को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है।इस नई जानकारी के कारण हमारी समझ में बदलाव भविष्य में अवसाद के लिए अधिक प्रभावी और लक्षित उपचार विकसित करने की आशा प्रदान करता है। Satish Tripathi sctri48