खुसी की खोज 2-In search of happiness – लोगों को खुश रहने के लिए छोटी-छोटी खुशियों को महत्व देना चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि ख़ुशी बहुत सरल लगती है, लेकिन साथ ही बहुत जटिल भी। कोई भी आपको खुश नहीं कर सकता। एकमात्र व्यक्ति जो आपको खुश कर सकता है वह आप और आपकी मानसिकता है, कोई और नहीं। परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, अपनी पसंद के काम करना, और दूसरों की मदद करना खुशी को बढ़ा सकता है। योग, ध्यान, और अन्य स्वस्थ गतिविधिया भी खुशी बढ़ाने में सहायक होती है।
- विषय सूची
- 1-क्या खुशी का स्त्रोत मनुष्य के जीन के अंदर छुपा है ?
- 2:-क्या खुशी नुरोट्रानसमीटर से निकलती है ?
- 3–ख़ुशी प्राप्त करने के मुख्य कारक
- 4-हिन्दू धर्म में कष्टों की स्वीकार्यता ख़ुशी देती है
- 5-महाज्ञानी .कबीरदास की सुख के बारे में ज्ञान
- 6:-उपसंहार
1-क्या खुशी का स्त्रोत मनुष्य के जीन के अंदर छुपा है ? वैज्ञानिको के अनुसार क्रोमोजोम 17 पर स्थित जीन 5-HTTLPR जब स्विच आन होता है तो यह ख़ुशी की अनुभूति कराता है । Warwick University के वैज्ञानिको के अनुसार यह जीन सेरोटोनीन नयूरोकेमिकल के स्तर को बढ़ा देता है , जिससे प्रसन्नता /,happiness बढ जाती है । वैज्ञानिक Danes के अनुसार यह जीन जितना बड़ा होगा ख़ुशी उतनी जादा होगी ,और इसके छोटे होने पर खुसी की मात्रा घट जाती है ।.फ़्रांस ,ब्रिटेन और अमेरिकन लोगो में , यह जीन अक्सर छोटा ही होता है, अतः उनके ख़ुशी का स्तर भी कम होता है ।
2:-क्या खुशी नुरोट्रानसमीटर से निकलती है ? ब्रेन में स्त्रावित होने वाले तीन neurotransmitters को फील-गुड-केमिकल कहा जाता है या फील-गुड-ट्रियो भी कया जाता है । ये है –१ सेरोटोनिन २-डोपामिन और ३- एंडोर्फिन। ये ही खुशी,आनंद / pleasure और मोटिवेशन के लिए रेस्पोंसिबल होते है । अगर इनकी उचित मात्रा आपके ब्रेन में स्त्रावित नहीं होगी तो आप चाहे कुछ भी कर ले, आप खुश नही हो सकते । योग ,ध्यान या किसी प्रकार का motivated प्रवचन भी आपको ख़ुशी नही दे पाएगा ।
3–ख़ुशी प्राप्त करने के मुख्य कारक १-अच्छा शारीरिक और मानसिक स्वास्थय। २-अछे और इंटिमेट रिलेसनशिप जैसे ,वैवाहिक जीवन में ,परिवार के लोग और मित्रो के साथ । 3:- प्रकृति और सुन्दरता को अनुभव करने की क्षमता । 4- जीवन का एक अच्छा स्तर और संतोषप्रद work-life । 5:-जीवन जीने की एक दार्शनिक या धार्मिक मनोवृत्ति ।
4-हिन्दू धर्म में कष्टों की स्वीकार्यता ख़ुशी देती है . गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है की मनष्य को किसी प्रकार के कष्टों या मुसीबतों का सामना ईश्वर की इक्षा समझ कर स्वीकार करना चाहिए ,और खुश रहना चाहिए । “होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा-“ गोस्वामी तुलसीदास । “जो कुछ भी भगवान राम ने बनाया है वह होगा, इसमें कौन बहस कर सकता है ?” यह नियति या दैवीय योजना के विरुद्ध बहस करने की निरर्थकता पर जोर देता है। सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस बिधि हाथ।। मुनिनाथ वशिष्ठ जी ने बिलखकर (दुःखी होकर) कहा- हे भरत! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश सब विधाता के आधीन है। कोई कुछ नही कर सकता। गोस्वामी तुलसीदास दास जी के अनुसार, सच्ची खुशी स्वयं के भीतर है ,और बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है। उन्होंने संतोष, वैराग्य और वर्तमान क्षण में जीने के महत्व पर जोर दिया। ये सब विधाता के हाथ हैं. इसलिए जो कुछ भी अछा या बुरा हो रहा हो उसे विधाता की मर्जी समझ कर स्वीकार कर लेना चाहिये ।
5-महाज्ञानी .कबीरदास की सुख के बारे में ज्ञान कबीर दास के अनुसार, सच्ची खुशी स्वयं के भीतर है और बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है। उन्होंने संतोष, वैराग्य और वर्तमान क्षण में जीने के महत्व पर जोर दिया। कबीर दास का मानना था कि खुशी के मार्ग में करुणा, प्रेम और क्षमा जैसे गुणों का विकास शामिल है। कबीर दास जी का कहना था कि सच्ची खुशी भीतर से आती है, और यह बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है। उन्होंने सिखाया कि हमें वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और जीवन में सरल चीजों की सराहना करनी चाहिए.।
6-उपसंहार :- यह कहा जा सकता है की ख़ुशी किसी एक चीज पर निर्भर नहीं है . इसके कई कारक होते, यह लगभग 30-50 प्रतिशत तक हमारे अनुवांशिक ,प्रकृति-प्रदत्त गुणों जैसे हमारे जीन और दिमाग में स्त्रावित होने वाले नूरोट्रांसमीटर पर निर्भर होती है । शेष 50-70 प्रतिशत हमारे , सामाजिक ,आध्यत्मिक पारिवारिक वातावरण से प्रभावित होती है ।. सतीश त्रिपाठी sctri48