होली पर धोखेबाज़ शिव-बूटी/भांग/Cannabis

होली पर धोखेबाज़ शिव-बूटी/भांग/Cannabis का प्रभाव – दोस्तों होली हम हिंदुओं का एक रंग-बिरंगा त्योहार है। इससे आपसी भाईचारा भी बढ़ता है, लेकिन साथ ही यह आजादी, हुड़दंग और मौज-मस्ती का मौका भी है। लोग खाते हैं, पीते हैं, हँसते हैं, गाते हैं, नाचते हैं और यहाँ तक गरियाते भीं हैं। इस अवसर पर लोगों का उत्साह देखकर ऐसा लगता है कि डार्विन ने सही कहा था कि मनुष्य नामक प्राणी की उत्पत्ति वानर प्रजाति से हुई है। खासकर शिव की नगरी वाराणसी के लोगों के बीच इससे जुड़ी कई परंपराएं हैं। मैं भी उसी काशी नगरी का निवासी हूं। यहां लोग शिव की बूटी यानी भांग का सेवन करते हैं और होली पर अपने घर आए मेहमानों का स्वागत ठंडाई और भांग से करने की परंपरा है. तो आज होली के मौके पर मैं अपने निजी जीवन में घटी इससे जुड़ी कुछ यादें साझा कर रहा हूं.

  • विषय सूची
  • १ वह रहश्यमयी हरी बर्फी
  • १.१ होली के अवसर पर
  • १.२ महा खोजी मैं
  • १.३ मंदिर पर मेरी महानिद्रा
  • २ जब होली की शाम अपने दोस्त के भाई को मैने दस बार प्रणाम कर मारा ।
  • २.१ प्रकाश के घर
  • २.२ ये तो पागल हो गया है।
  • ३ अंतिम बात

1 –वह रहशयमई हरी बर्फ़ी -यह बात बहुत पुरानी है । तब मै कच्छा 6 का छात्र हुआ करता था । मिर्जापुर के गाव के एक विद्यालय भूड़कुडा मे पढ़ता था । क्योंकि मेरे पिताजी सिचाई विभाग के बांध विभाग मे इंजीनीयर हुआ करते थे, और वही पटेहटा गाव की सिंचाई विभाग की कालोनी मे रहते थे। वहाँ का सबसे नजदीक स्कूल ,3 किलोमीटर दूर भूड़कुडा मे ही था । वहाँ से सभी बच्चे पैदल या साइकिल से भूड़कुड़ा माध्यमिक स्कूल में पढ़ने जाया करते थे ।

1.1होली के अवसर पर कुछ हुआ यूँ की होली का अवसर था और मेरी माता जी ने कई तरह के पकवान , खुर्मा, मठरी और वह हरी बर्फ़ी बनाई थी । जब भी कोई मेहमान आता उसके सामने सब समान के साथ वह हरी बर्फ़ी भी अलग से रख दी जाती थी। बड़े लोग अंत मे उसमे से एक या दो खाते थे पर हम बच्चों को वह बर्फ़ी नहीं दी जाती थी ,मुझे भी नही । माताजी बड़े जतन से उसे छुपा कर रख देती थी। मै कभी उसे माँगता तो मना कर देती । कहती उसे बड़े लोग ही खाते है। मै उसे खाने को बहुत उत्सुक रहता था । माताजी की अनुपस्थित मे उसे खोजता फिरता था पर वह मिलती नही थी ।

1.2: महा खोजी मै ; मै भी कम खोजी नही था ,एक दिन मैंने जाली ( उन दिनों एक जालीदार अलमारी हुआ करती थी उसे जाली कहते थे ) के सबसे पिछले हिस्से मे एक कटोरे के अंदर छिपी उस हरी बर्फ़ी को पा ही लिया। सुबह मेरे स्कूल जाने के समय माताजी जब अन्य कामों मे व्यस्त थी ,मैंने उनकी नजरे चुरा कर उसमे से एक बर्फ़ी गटक ली । मुझे तो बहुत स्वादिष्ट लगी ,तो मैंने दुबारा दो तीन और सटक ली ,और जल्दी से अपनें सब स्कूल साथियों के साथ स्कूल के लिए निकल लिया । हम लोग पैदल ही स्कूल जाया करते थे। रास्ते मे स्कूल के एक किलोमीटर पहने एक मंदिर पड़ता था। मुझे तो कुछ देर बाद नींद आने लगी थी ,तो मैंने अपने स्कूल के साथियों से कहा ,तुम लोग चलो , मुझे थकावट लग रही है ,मै थोड़ी देर यही आराम करके आता हू। फिर सब सहपाठी स्कूल चले गए ।

1.3: मंदिर पर मेरी महा निद्रा; मै वही बाहर मंदिर के फर्श पर सो गया। स्कूल की छुट्टी होने पर शाम 4 बजे जब मेरे साथी उस मंदिर पहुंचे तो पाया की मै अभी भी वही मंदिर की फर्श पर गहरी नींद मे सो रहा हूं। उन्होंने मुझे झकझोर कर उठाया । मै हड़बड़ी मे उठा और बोला;- यार बस अभी स्कूल चल रहा हूं । वे हँसते हुए बोले; अबे स्कूल की छुट्टी हो गयी है , शाम के साढ़े चार बज गए है। हम लोग घर लौट रहे है । मुझे विश्वाश ही नही हो रहा था की मै इतनी देर वहीं मंदिर में सोया रहा । खैर मै उठा और अपने सभी साथियों को किरिआ खिलाया /मतलब कसम दिलाई की वे घर पर मेरी शिकायत नही करेंगे । बाद मे मुझे पता चला की उसमें भांग मिली हुई थी ,इसीलिए वह रहशयमई हरी बर्फ़ी हम बच्चों को नही दी जाती थी ।

2- जब मैंने होली की शाम अपने दोस्त के बड़े भाई को दस बार प्रणाम कर मारा

वाकया कुछ यूं था की – उस समय मै एम. एल. एन. मेडिकल कालेज इलाहाबाद मे द्वितीय वर्ष का छात्र था । होली का अवसर था , सभी लड़के हुड़दंग मे मस्त थे , एक दूसरे को रंग लगा रहे थे , उछल कूद रहे थे ,एक दूसरे को मेडिकल में गरिया रहे थे । शाम को एक दूसरे के कमरे पर मिठाई खा रहे थे और कुछ लोग मधुपान तो कुछ ठंढाई भी पी रहे थे ,और पिला रहे थे । मै तो टी-टोंटलर हूं। तो मेरे एक साथी ने मुझे ठंढाई आफर किया । मैंने पूछा की इसमे शिवबूटी यानि भांग तो नही मिली है । वो बोला नही ,बिल्कुल सादी है । तो फिर मै पूरा ग्लास गटक गया और अपने मित्र प्रकाश के घर चल साइकल से चल दिया ।

2.1 At Prakash’s house ; After some time, I left for Naya Bairahna to meet my friend Prakash at his house for Holi. On reaching there, my head started getting heavy, Prakash ji and his elder brother Radheshyam ji were also there in his house. He and I applied gulal and fed sweets. After half an hour I came to my hostel and slept.

2.2 ये तो पागल हो गया है : अगले दिन प्रकाश मेरे हास्टल मे आए और बोले , यार तुमने कल तो गजब कर दिया । मेरे भाई साहब तो बहुत परेशान हो गए थे और बोल रहे थे ,ये पागल हो गया है क्या । मैं बोला मैंने ऐसा क्या कर दिया था । प्रकाश बोले – तुमने मेरे बड़े भाई को दस बार पैर छूकर प्रणाम कर दिया था । मै बोला – यार मुझे तो ऐसा कुछ नही याद या रहा है। हाँ इतना बार बार मन मे लग रहा था की ये मेरे मित्र के बड़े भाई है और इनको प्रणाम करना चाहिए । तो शायद मैंने दो बार प्रणाम कर दिया हो। वे बोले नहीं तुमने दस बार उनका पैर छुआ था। अब माजरा मेरे समझ मे आया की मेरे नालायक दोस्त ने मुझे ठंढाई मे भांग मिला कर दिया था ।

3-अंतिम बात तो ये था छलिया शिव की बूटी यानी भांग / cannbis का कमाल , मैंने कान पकड़ा और मन मे कहा -अब भविष्य मे होली के दिन मै किसी के घर हरी बर्फ़ी और कोई ठंढा पेय पदार्थ नही लूँगा । क्योंकि मुझे तो ये शिवबूटी बहुत तेज चढ़ती है । सतीश त्रिपाठी sctri ४८

Author: sctri48
मैं डाक्टर हूं ,रेडियोलॉजिस्ट। Mera hindi me blog में मेरी रुचि ब्लाग व रिव्यू लिखने में है। मैं मुख्य रूप से यात्रा ,स्वास्थ्य,जीवन ,शैली मोटिवेशन और विविध विषयों पर लिखता हू। मैं ट्रिपएडवाइजर, गूगल मैप कोरा फोरम पर भी लिखता रहता हू। इसके अलावा गाने में भी मेरी रुचि है। इसके अलावा मैं अंग्रेजी में भी लिखता हूं । My websites are www.travelprolife.com and www.blogsatish.com।

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