Natural Therapy-प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न आयाम –प्राकृतिक चिकित्सा प्रकृति की उपचार शक्ति के सिद्धांतों पर आधारित है। यह शरीर की उपचार करने की प्राकृतिक क्षमता को पहचानता है और प्राकृतिक उपचारों के माध्यम से इस प्रक्रिया का समर्थन और सुधार करने के लिए काम करता है। प्राकृतिक चिकित्सक केवल लक्षणों को कम करने के बजाय किसी बीमारी या असंतुलन के मूल कारण की पहचान करने और उसका इलाज करने का प्रयास करते हैं।
- विषय सूची
- 1-हर्बल औषधियाँ
- २-पोषण एवं खानपान
- ३-जल चिकित्सा
- 4-सूर्य किरण चिकित्सा
- 5-मालिश द्वारा उपचार
- 6-मिटटी लेपन द्वारा चिकित्सा
- 7-योगासन और व्यायाम से उपचार
- 8-प्राकृतिक चिकित्सा के लाभ
- 9-सारांश . 1-हर्बल औषधियाँ: हर्बल दवाओं द्वारा विभिन्न बीमारियों के इलाज का एक लंबा इतिहास है। पौधों के उपचार गुणों का उपयोग करके, हर्बल सप्लीमेंट अक्सर व्यक्तियों को उनकी व्यक्तिगत जरूरतों के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। ये पीने वाली दवा के रूप मे या फिर शरीर के अंगों पर लेपन-विधि से प्रयोग किए जाते है । ये चूर्ण की तरह या इनका काढ़ा बना कर विभिन्न रोगों मे पीने को दिया जाता है । इसमे पौधे के पत्ते, डंठल या फूलों को उपयोग मे लाते है।
२-पोषण एवं खानपान अच्छा पोषण अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। आपका प्राकृतिक चिकित्सक आपके खाने की आदतों का आकलन करेगा और आपकी पोषण संबंधी कमियों को दूर करने, पाचन को बढ़ावा देने और आपके समग्र स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद के लिए अनुकूलित पोषण योजनाओं का सुझाव दे सकता है। इसमे , विटामिन या फाइबर युक्त फल सब्जी और सलाद खाने को दिया जाता है।
३-जल चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सक परिसंचरण को बढ़ावा देने, दर्द को कम करने और विषहरण में सहायता के लिए विभिन्न तरीकों से पानी का उपयोग करते हैं। इसमें हिप स्नान, एनीमा, स्पाइनल स्प्रे, भाप और सौना पैर और बांह स्नान, किया जाता हैं। हिप बाथ: इसमें -बाथ टबआंतरिक में जल ,ठंडा, प्राकृतिक, गर्म और विशेष तापमान पर दिया जाता है। यह पेट के रोगों में उपयोगी है, कब्ज, अपच, मोटापे से राहत देता है, गर्भाशय, पेल्विक अंगों की सूजन, बवासीर, यकृत और प्लीहा की भीड़, मूत्र असुविधा आदि को कम करता है
4-सूर्य किरण चिकित्सा:- मानव शरीर पर सूर्य की किरणों का विशेष प्रभाव होता है , यह शारीर में विटामिन डी के स्तर को बढाता है शारीर के श्वेद-ग्रंथियों से पसीना निकाल कर आतंरिक शुद्धि करता । शरीर में रंगों का असंतुलन बीमारियों का कारण बनता है। विभिन्न रंगों की सूर्य किरणें मानव शरीर पर रोगों को ठीक करने के लिए अद्भुत प्रभाव डालती हैं। सूर्य स्नान के दौरान विभिन्न रंगों के चश्मों के माध्यम से सूर्य की किरणें शरीर तक पहुंचती हैं।
5-मालिश द्वारा उपचार रोगी के शरीर पर अपने हाथों को घुमाने में मदद करने के लिए तेल या लोशन से मालिश करके पूरे शरीर का इलाज करते हैं। इसमे कई प्रकार के स्ट्रोक का उपयोग किया जाता है, जैसे इफ्लुरेज, पेट्रीसेज, सानना और घर्षण शामिल हैं .मालिश के अनेको फायदे होते है ,सबसे पहले यह शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ाती है ,जिससे मसल रिलेक्सेसन होता है .वे अंग स्वस्थ रहेंगे ,तनाव करने वाले स्ट्रेस हारमोन कार्टिसोल का स्तर कम करती है. यह मोटापा भी कम करती है .ब्लड प्रेसर कम होता है जिससे ह्रदय रोग से बचाव होता है ।
6-मिटटी लेपन द्वारा चिकित्सा – हिन्दू मान्यता के अनुसार हमारा शरीर मिटटी के पञ्च-तत्त्व से निर्मित है और अंत में फिर इसे मिटटी में ही मिल जाना है. मिटटी का मानव शरीर और बीमारी पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। अक्शर लोग मुलतानी मिटटी का प्रयोग चेहरे की सुन्दरता और कान्ति बढाने के लिए करते है .इसका प्रयोग रक्त परिसंचरण में सुधार करता है, क्षेत्र में सूजन को कम करता है, अवशोषण बढ़ाता है, विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। मिट्टी चिकनी, प्रदूषण रहित, 3 फीट गहराई से निकाली हुई होनी चाहिए। इसमें अशुद्धियाँ नहीं होनी चाहिए । इसका चूर्ण बनाकर साफ जगह पर संग्रहित करना चाहिए। लगाने से पहले इसे कम से कम 24 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए.
कुछ निश्चित प्रकार के योगासनों और व्यायाम के द्वारा तन और मन रिलैक्स होते है .शरीर में लचीलापन आता है ,ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है और तनाव दूर होता है । शरीर के प्रतेक अंगो और दिमाग में रक्त-संचार में वृद्धि होती है जिससे समग्र स्वस्थ्य की प्राप्ति होती है ।
8–प्राकृतिक चिकित्सा के लाभ – प्राकृतिक चिकित्सा से शरीर में कई तरह से लाभ होता है।
8.1–तन और मन का रिलैक्सेशन -इससे मन का तनाव और और अवसाद दूर होता है और उत्साह और प्रसन्नता का संचार होता है। क्योंकि प्राकृतिक चिकित्सा से ब्रेन मे फ़ील गुड नुरो-रसायन सेरोटोनिन डोंपमिन और एन्डोरफीन का संचार बढ़ता है । योग और विशेष प्रकार के व्यायामों से शरीर मे लचीलापन आता है और मांसपेशिया रीलैक्स होती है।
8.2–पाचन संबंधी समस्याएं: आहार और जीवनशैली को संशोधित करके, प्राकृतिक चिकित्सा उपचार irritable bowel syndrome (आईबीएस), अपच और कब्ज जैसी बीमारियों से राहत दिलाने में मदद कर सकता है।
8.3–क्रोनिक दर्द: एक्यूपंक्चर, मालिश और प्राकृतिक सूजन-रोधी दवाओं जैसे उपचारों के संयोजन से, प्राकृतिक चिकित्सा फाइब्रोमायलजिया , गठिया और माइग्रेन सहित बीमारियों से राहत प्रदान कर सकती है।
8.4–तनाव और चिंता: तनाव और चिंता को दूर करने के लिए, प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा माइंडफुलनेस व्यायाम, हर्बल दवाएं, पोषण संबंधी सहायता और विश्राम तकनीकों को शामिल किया जाता है।
8.5-हार्मोनल असंतुलन : हर्बल थेरेपी, आहार समायोजन और जीवनशैली में संशोधन के संयोजन का उपयोग करके, प्राकृतिक चिकित्सक पीसीओएस, रजोनिवृत्ति और थायरॉयड विकारों जैसी बीमारियों में हार्मोन असंतुलन का इलाज कर सकते हैं।
8.6-मोटापे पर नियंत्रण : व्यक्तिगत पोषण योजनाओं से शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित करके,यह चयापचय संबंधी विकारों को दूर करती है . यह स्वस्थ जीवन शैली के व्यवहार को बढ़ावा देकर, प्राकृतिक चिकित्सा वजन नियंत्रण करती है।
9-सारांश – इस प्रकार हम देखते है की प्राकृतिक-चिकित्सा एक होलिस्टिक,अर्थात समग्र उपचार की विधि है। इसके द्वारा न केवल लोकल या शरीर के किसी एक भाग ,बल्कि पूरे शरीर का उपचार शामिल होता है । तन मन दोनों प्रफुल्लित होता है और उपचार के साथ-साथ उत्साह का संचार होता है । सतीश त्रिपाठी sctri48
प्राकृतिक चिकित्सा से सम्बंधित विभिन्न आयामों का एक सुस्पष्ट एवं संक्षिप्त आलेख। विभिन्न रोगों में प्रयोग की जाने वाली प्राकृतिक चिकित्सा विधियों की प्रारंभिक वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करने के लिए यह लेख अत्यंत ही महत्वपूर्ण व सारगर्भित सिद्ध होगा, मेरा ऐसा विश्वास है।
मेरी वेबसाइट देखने के लिए आपका आभार। जैसा आपने लिखहाई। मेरा यही धेय है की मैं संक्षेप में आम जनता को स्वास्थ्य के विषय में कुछ जानकारीबदेता रहू । इस यात्रा में मुझे आपके सुझाव व मार्गदर्शन की आवश्यकता रहेगी। सतीश